मन के भीतर तक पहुँच गई,
ठंडक की ठंडी हवा
अब क्या हो इस ठिठुरन का हल
कुछ है क्या इसकी दवा।
होती तो मैं खा लेता,
सबको उसे खिला देता,
जितने भी मौसम होते हैं
उन सबमें खूब मजे लेता।
ठंडक में ठंड सताती है
गर्मी में बदन पसीने से
इतना तर हो जाता है
नींद नहीं आ पाती है।
ठंडा हो या गर्मी हो
या बरसात की नमी हो,
सब सह लेता यह शरीर
बन जाती कोई औषधि तो।
लेकिन हो तो वो सस्ती हो
जिसको गरीब भी खा पाये,
जीवन के कुछ पल उसके भी
जिससे अच्छे से कट जाये।