खो गये सारे शब्द
अब जाने कहाँ !
जज्बात भी चादर
ओढ़ सो गये
कल्पना भी अब
कहीं विचरण नहीं करती
सपने सारे सपने हो गये
मेरे अन्दर की
कवयित्री अन्तस के आरेख’
बन गई
धुरी कविताओं की अधूरी रह गई!!
खो गये सारे शब्द
अब जाने कहाँ !
जज्बात भी चादर
ओढ़ सो गये
कल्पना भी अब
कहीं विचरण नहीं करती
सपने सारे सपने हो गये
मेरे अन्दर की
कवयित्री अन्तस के आरेख’
बन गई
धुरी कविताओं की अधूरी रह गई!!