“अन्तस के आऱेख” Pragya 4 years ago खो गये सारे शब्द अब जाने कहाँ ! जज्बात भी चादर ओढ़ सो गये कल्पना भी अब कहीं विचरण नहीं करती सपने सारे सपने हो गये मेरे अन्दर की कवयित्री अन्तस के आरेख’ बन गई धुरी कविताओं की अधूरी रह गई!!