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अन्न- दाता

आज हमारा जीवन रक्षक, अन्न- दाता कर्म भूमि छोड़ कर
दर – बदर सड़कों पर,
संघर्ष करता,
गरीब हर साल और गरीब होता जाता,
सदियों से हक के लिए लड़ता ,
हर बार ठगा जाता ,
आत्म हत्या का विकल्प चुनता,
कितना बेबस,सुनता कौन,
राजनीति की भेंट चढता आया,
वोट बैंक दिग्भ्रमित करता ,
अब तो उम्मीद भी हारने लगा,
भटके कभी इस छोर कभी उस छोर
कोई रखता नही याद इसका बलिदान
दुआ करो,
कही इसकी नई पीढ़ी भूल ना जाए खेत खलिहान ।

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