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अब उठ नौजवान

अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है
जगमगाते दीप से
सूरज की तरह चमकना है

दिल जो कहे
वो करना है
ज़िंदा मछली की तरह
धारा के विपरीत तैरना है

ज़िन्दगी गिराएगी
कभी भटकाएगी
कहदे अपने होसलो से
हर हाल में मंज़िल तक पहुंचना है

अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

हार भी जाये तो गम मत करना
अपनी राह पर चलते रहना
क्यूंकि हार की रात कितनी घनी हो
पर जीत का सवेरा तो होना है

ना डर तू
ना घबरा तू
अपने होसलो के पंखो को फैलाके
परिंदे की तरह आसमान में उड़ना है

अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

अपने गमो को पीछे छोड़
तुझे आगे बढ़ना है
अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

ये जीत तो मिटटी है
हाथ में आते ही फिसलेगी
मेहनत के पसीने से
इस मिटटी को कठोर बनाना है

अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

इस ज़िन्दगी के सागर में
कई तूफान आएंगे
अपने हौसले की नाव को मजबूत बना
इस सागर को पार करना है

अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

पहले कदम में
तेरा मन बहकेगा
कुछ और करने को कहेगा
पर याद रखना अपना वादा
जो अपने आप से किया था
चाहे गिर जाऊ राहो में कई बार
पर मंज़िल की नज़रो से नहीं गिरना है
अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

समझता हूँ तेरी
राहे आसान नहीं
रख भरोसा उस ऊपर वाले पर
अगर उन्होंने रास्ता दिखाया है
तो उनकी दया से ही तू मंज़िल तक पहुंचना है
अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

कर तप पूरी लगन से
तुझे ध्रुव तारा बनाना है
अपने आने वाली पीढ़ी का
मार्गदर्शक बनना है
अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

– हिमांशु ओझा

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