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अब फुर्सत कहाँ

जाने क्या सोंचती रहती हूँ
बस उसके ही खयालों में
खोई रहती हूँ
जिन्दगी अब फुर्सत कहाँ
देती है
अपनी उलझनों में ही उलझी
रहती हूँ…

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