अभी-अभी। प्रतिमा चौधरी 4 years ago अभी-अभी कुछ बूंदों से रूबरू हुए, चमकते हैं मोती से, बरसते हैं बुंदों की तरह। पर आयानास ही नहीं बरसते। जब बनते हैं गम के बादल, सिमट जाते हैं पलकों पर। फिर गिरते हैं धीरे-धीरे बिना किसी शोर के क्षण-क्षण।