Site icon Saavan

अल्फाज ठिठुर गये

जाने कितने अल्फाज ठिठुर गये
जो लिखे थे मन के कागज पर मैंने
सिकुड़ गये कुछ
ठण्ड की कटीली रातों में तो
कुछ जम गये बर्फ के गोलों में
सुबह धूप निकलेगी तो
पिघलेंगे यही सोंचती रही मैं
पर ऐसा कुछ भी ना हुआ
वह अल्फाज जाने किन
समुंदरों में बह गये
शायद घने कोहरे की धुंध में
भटक गये
तब से लिए ‘कलम और स्याही’ घूमती हूँ
पर वह अल्फाज
खो गये तो खो गये !!

Exit mobile version