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*आख़री खत*

वो मीठी बातें और मुलाकातें
करते थे हम रात भर जो प्यार भरी बातें
तुम जाने कितने तोहफे
मुझे दिया करते थे,
हर तोहफे में एक खत रखा करते थे..
उन खतों की बात निराली होती थी,
पढ़ती थी अकेले जब
हाथ में चाय की प्याली होती थी…
तुम्हारे खतों की भाषा
मेरी कविताओं से अच्छी होती थी,
तुम्हारे हर खत को मैं बार-बार
पढ़ती थी…
फिर तुम्हारी एक गलतफहमी ने
सब बर्बाद कर दिया,
बहुत दूर तक जाने वाला था जो रिश्ता
एक ही झटके में हमने तोड़ दिया…
जलाया जब आज मैने
वो तुम्हारा आख़री खत,
सारे जख्म हरे हो गये
जिन्हें भरने में लगा था काफी वक्त…

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