ना जाने ज़मीर कहां खो गया उनका,
जो आतंकियों का साथ निभाते हैं,
हिंसा, नफरत का पाठ सीख कर,
दहशत,डर फैलाते हैं।
मजहब ,जिहाद के नाम पर,
मानव जाति को लड़वाते हैं,
स्वयं आतंक की शरण लेते,
औरों को आतंकी बनाते हैं,
26/11 जैसे हमलों से,
सबका दिल दहलाते हैं,
मानवता का भाव त्याग,
हैवानियत पर उतर आते हैं,
मस्तिष्क का गर सदुपयोग करें,
कुछ नया सृजन कर सकते हैं,
आतंकवाद की राहें छोड़,
भले मानुष वह बन सकते हैं,
आतंकवाद गर मिट जाए,
राष्ट्र सर्वोच्च शिखर पर अलंकृत हो जाए,
खुशियां घर आंगन में छाए,
अमन-चैन सुख शांति देश में काबिज हो जाए।।