Site icon Saavan

आत्मनिर्भर भारत(व्यंग्यात्मक काव्य शैली)

कैसे दिन आये हैं!
नौकरी की बात करो तो
उज्जवला योजना गिनवाते हैं
बेरोजगारी का मुद्दा उठाओ तो आत्मनिर्भर का पाठ पढ़ाते हैं
इतना पढ़ लिख कर यदि
पकौड़े तलना था
तो आखिर हमने क्यों
दिन रात किताबों को सीने से लगाया
आत्म निर्भर ही बनना था तो
क्यों मां बाप ने पढ़ाया
हम भी तो अपने मां बाप का व्यवसाय चुन सकते थे
उनकी गरीबी में उनका हाथ बटा सकते थे
सोचा था मां बाप ने
बेटा पढ़ लिख कर बनेगा अफ़सर तभी तो तूने खूब पढ़ाया
खेतों में मेहनत कर कर कर
अब बैठा है घर में बेटा
परचून की दुकान लगाकर
बाप की छाती फटे और
बेटा बन गया आत्मनिर्भर।।

Exit mobile version