बीत गया सुकूँ का बादल अब शिकन का मौसम आया है,
जो लगता था आशियाना अपना सा कभी,
आज उड़ कर आये गैर परिंदों का घर लगता है,
बनाये थे शिद्दत से अपने जो घोंसले हमने,
आज तिनको सा बिखरता हमारा घर लगता है॥
राही (अंजाना)
बीत गया सुकूँ का बादल अब शिकन का मौसम आया है,
जो लगता था आशियाना अपना सा कभी,
आज उड़ कर आये गैर परिंदों का घर लगता है,
बनाये थे शिद्दत से अपने जो घोंसले हमने,
आज तिनको सा बिखरता हमारा घर लगता है॥
राही (अंजाना)