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आसमां ये मुझे कभी खरीद नहीं सकता मैं पाँव हमेशा जमीं पे टी’काके रखता हूँ ।।

जिंम्मेदारियों का बोझ मैं उठा’के रखता हूँ
मेले में बेटे को काँधे पे बिठा’के रखता हूँ ।।

आसमां ये मुझे कभी खरीद नहीं सकता
मैं पाँव हमेशा जमीं पे टी’काके रखता हूँ ।।

रखते होंगे बेशक,दिल में लोग दुश्मनी
मगर मैं फिर भी सबसे बना’के रखता हूँ ।।

है ख्वाईशें मेरे दिल में भी बहुत दोस्तों
मगर मैं पाँव चादर तक फैला’के रखता हूँ ।।

मिलती है मेरी कमाई में बरकत यूँ मुझे
पूरी तनख़्वाह माँ के हाथ में ला’के रखता हूँ ।।

उतारती है ज़िंदगी मुझे भी कसौटियों पे
हर हाल में ईमान,अपना बचा’के रखता हूँ ।।

लोग तकते है मेरे आँगन में दीवार खींचे
भाई कुछ भी कहे नज़र झुका’के रखता हूँ ।।

महक आज भी ईंटों से आती है,पसीने की
बुजुर्गों की यादें मैं सीने से लगा’के रखता हूँ

जानता हूँ दुश्मनी का,बस ये इक नतीजा
“पुरव” कब्र के बराबर कब्र बना’के रखता हूँ ।।

पुरव गोयल

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