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इंतज़ार

इंतज़ार झिलमिलाता रहा
रातभर आंखों में!
तुम नहीं
तुम्हारा पैग़ाम आया
‘आज न सही, कल की बात रही’।

चलो मान लेते हैं;
एक और झूठ
तुम्हारे नाम पर जी लेते हैं

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