इंसान तेरे रूप अनेक
कोई ईमानदारी का प्रतीक
कोई बेमानी की मिसाल,
कोई जलता दीपक मंद करता है
कोई जलाता है मशाल,
कोई शांति का प्रतीक
कोई करता है बवाल
कोई बेशर्मी की हद पार करता है
कोई रखता है मुंह में रुमाल।
कोई निष्क्रिय रहता है
कोई करता है कमाल।
कोई खुद का ही पेट भरता है
कोई जरूरत मंद के लिए सजाता है थाल,
कोई कर्म से परिचय देता है
कोई बजाता है गाल।
कोई दूसरों के लिए
मार्ग खोलता है
कोई दूसरों के लिए
रचाता है भंवरजाल।
इंसान तेरे रूप अनेक
कभी सहेजता रिश्तों को
कभी देता है फेंक।