Site icon Saavan

इतना भी कोई गिरा न होता

जय श्री राम
———————
इतना भी कोई गिरा न होता
मन पाप करता, मन डरता
इसका मतलब ये नहीं कि
नर नारायण ना होता ।।1।।
——————————
माया तो मायापति की अर्ध्दांगनी है
मन भी ईश्वर का स्वरूप है
मन को मन ही साधता है
तब जाके कोई भवसागर पार होता है ।।2।।
——————————————
कोई गिरा-उठा है या कोई उठा-गिरा है
ये सब मायापति की महिमा है
वोही सब खेल रचते है
वोही जीतते हारत है ।।3।।
——————————————-
दुनिया की रंगमंच में सब पाठ अदा करते है
ईश्वर भी कभी-कभी, हर युगों में
धर्म-संस्थापना के लिए नर रूप में आते हैं
इतना भी कोई गिरा न होता ।।4।।
कवि विकास कुमार

Exit mobile version