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ईश्वर का खेल निराला है

ईश्वर का खेल निराला है
सब कुछ अपने प्रारब्ध
और कर्म से ही मिलता है
जैसे तुझे ताली
मुझे गाली।
सृजनहार ही सब सृजन करता है
हमने तो बस गलतफहमी पाली,
वही सींचता है लेखनी को
वही तो है जिंदगी का माली।
लेकिन कर्म भी तो
अपने-अपने हिसाब का है आली।

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