झाँक रहा था मैं एक रोज
ईश्वर की खिड़की के भीतर,
किन्तु दंग रह गया
निज प्रतिबिम्ब देख उस खिड़की में!
अनायास ही कोई
अनहद नाद उठा मस्तिष्क में:
‘देख ले दर्पण यह,
देख ले निज ईश्वर की छवि!’
झाँक रहा था मैं एक रोज
ईश्वर की खिड़की के भीतर,
किन्तु दंग रह गया
निज प्रतिबिम्ब देख उस खिड़की में!
अनायास ही कोई
अनहद नाद उठा मस्तिष्क में:
‘देख ले दर्पण यह,
देख ले निज ईश्वर की छवि!’