ईश ऐसा वर मुझे दे
ईर्ष्या से दूर बैठूँ,
पंक्तियाँ लिख दूँ वहाँ
जिस ओर थोड़ा दर्द देखूँ।
देख अनदेखा नहीं
कर पाऊँ पीड़ा दूसरे की,
बल्कि खुद महसूस
कर पाऊँ मैं पीड़ा दूसरे की।
मैं किसी के काम आऊँ
सीख यह मिलती रहे,
उठ मदद कर दूसरे की
आत्मा कहती रहे।
ईश मेरा मन करे
कुछ इस तरह की बात बस
बस रहूँ सेवा में रत
कोई नहीं हो कशमकश।