उदासी
मधुमक्खी के छत्ते सा है
ये ज़हान ,
यहां सब, मतलब से
झांकने वाले हैं।
अब किसे मैं यहां अपना कहूं,
यहां सब काटने वाले हैं ।
मां को छोड़कर,
सब लोभी है, ढोंगी है,
फरेबी है ।
जरा संभल कर ‘ मानुष ‘
यहां सब पीछे से झपटने वाले हैं।
——–मोहन सिंह मानुष