तुझसे है नाता
विश्वास न आता
इक पास आता
दूजा दूर जाता
दूर रहकर भी
कहां चैन आता
शादी लड्डु जैसे
खाकर है पछताता
अब ताकता राह
नये पंछियों की
जो देख सुनकर
भी न सीख पाता
परानी राहों पर
पैर को जमाता
उधार की जिंदगी
उधार में गंवाता
कहां सीखता कोई
सब सिखा जाता
भ्रम भरी दुनियां
किसे सीखना आता