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उनके लब कांप गए, मेरी आंख भर आई……

मिले थे फिर से तो, पर बात न होने पाई

उनके लब कांप गए, मेरी आंख भर आई।

बुझ गए थे सभी चिराग मगर इक न बुझा

तो हवा जा के आंधियों को साथ ले आई।

जंहा से दूर निकल आये थे, वहीं पहुंचे

मेरे सफर में हर इक बार उसकी राह आई।

अपने हालात पे खुद रोये और खुद ही हंसे

हमीं तमाशा थे और हम ही थे तमाशाई।

मेरे हर दर्द से वाकिफ है आस्मां कितना

हम न रोये थे तो बरसात भी नहीं आई।

जिंदगी भर उनकी हर याद संभाले रक्खी

उम्र भर इस तरह हम उनके रहे कर्जाई।

~~~~~~~~सतीश कसेरा

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