तुम्हारे सुधर जाने की गुंजाइश ही नहीं थी
तो आखिर हम कोशिश कब तक करते !
रफ्ता-ऱफ्ता तुम पास आते गये
हम भला दूर कैसे रहते !
रोंका तुम्हें, समझाया तुम्हें
और भला हम क्या करते…
जब तुम्हें हमसे मोहब्बत ही नहीं थी
आखिर हम तुम्हें अपना कब तक समझते…
तुम्हारे सुधर जाने की गुंजाइश ही नहीं थी
तो आखिर हम कोशिश कब तक करते !
रफ्ता-ऱफ्ता तुम पास आते गये
हम भला दूर कैसे रहते !
रोंका तुम्हें, समझाया तुम्हें
और भला हम क्या करते…
जब तुम्हें हमसे मोहब्बत ही नहीं थी
आखिर हम तुम्हें अपना कब तक समझते…