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एक नात लिखूँ

मैं दिल की जज़्बात लिखूँ।
चाहता हूँ एक नात लिखूँ।।
मंदिर और मस्जिद में ढूँढ़ा
ढूँढ़ा काबा -काशी में।
गंगा और यमुना में ढूँढा
ढूँढा जलनिधि राशी में।
मिला नहीं जो मुझको
उसकी क्या मैं बात लिखूँ।
आखिर कैसे मैं नात लिखूँ।।
मौन खड़ी थी मंदिर की मूरत
कोलाहल मस्जिद में था।
एक दिन पाऊँगा मैं उसको
आखिर मैं भी जिद में था।।
तिनके में तरू तरू में तिनका
आखिर एक जात लिखूँ।
खुद में झाँक ‘विनयचंद ‘
हर डाली हर पात लिखूँ।
हर में हर जो बैठा उसकी
एक- एक सौगात लिखूँ।
इश्क ‘विनयचंद ‘कर इंसां से
लाख टके की बात लिखूँ।।

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