याद के दरमियाँ हम मिलेंगे कभी,
फूल गुलशन में भी तो खिलेंगे कभी।
शक़ मेरे इश्क़ पे मत करो साथियाँ,
खत तुम्हें खून से हम लिखेंगे कभी।
आज तो दौर है मुफ़लिसी का मग़र,
चाँद तारे मेरे सँग चलेंगे कभी।
ज़िन्दगी ने किए सौ सितम गम नहीं,
है यकीं ग़म हमारे जलेंगे कभी।
छोड़कर जो गए वो अजीजों में थे,
हाथ अपना बेचारे मलेंगे कभी।
हो रहा है असर अब दुआ का मेरी,
ख़्वाब आँखों में उसके पलेंगे कभी।
हुस्न उसका नहीं है बतौरे बयाँ,
जिद मेरी है गज़ल हम लिखेंगे कभी।
जो गुज़र जाते हैं आज नजरें बचा,
दर पे काफ़िर तेरे वो रुकेंगे कभी।
#काफ़िर