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कभी जिन्दगी हर्षपूर्ण है

एक गुलाब
एक सी पत्ती, काँटे, डंठल एक समान
फिर कौन रंग भरता है इनमें,
कहाँ है रंगों की खान।
लाल-सफेद, पीले, गुलाबी
कितने सारे हैं गुलाब,
इतने सारे रंग व खुशबू
मन विस्मित सा है जनाब।
जीवन इस गुलाब जैसा है
तरह तरह के रंग
कभी जिन्दगी हर्षपूर्ण है
कभी खूब बेढंग।
कभी सद्कर्मों की खुशबू
कभी गलत कार्य के काँटे
ईश्वर ने मानव को फल सब
कर्मों के अनुसार ही बांटे।
जितना हो सके मुझे अपने
कदमों को सद पर रखना है
क्योंकि मुझे ही कर्मो का फल
अपनी रसना में चखना है।

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