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कविता ऐसी कहो कलम

कविता ऐसी कहो कलम,
प्रफुल्लित हो उठे मन।
दुखी ह्रदय में खुशियों के फूल खिलें,
बिछुड़ों के हृदय मिलें।
कभी प्रकृति का हो वर्णन,
कविता ऐसी कहो कलम।
देखें उषा की लाली को,
सुबह की पवन मतवाली को।
आलस्य त्याग उठ जाना है,
एक गीत भोर का गाना है।
जब अरुणोदय हो अम्बर में,
दिनकर बिखेर रहे हों स्वर्ण-रश्मियाँ
वह सुन्दर दृश्य दिखे सभी को,
उसे देखने को आतुर हों सबकी अखियाँ।
आलस छोड़ ऐसी भोर के हों दर्शन,
कविता ऐसी कहो कलम॥
_____✍गीता

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