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कविता — बिका हुआ खरीददार

बेशक; तुम खरीद लोगे!
……………… बिछाओगे
निचोड़ कर फेंक दोगे; मुझे
: एक हिकारत के साथ…..

लेकिन; फिर भी हार जाओगे !
हाँफती साँसों से यकीनन
: कैसे पार पाओगे ?

पीड़ा और समर्पण से गुज़रकर
मुस्कुराऊंगी : मैं—-विजयी बनकर

क्योंकि ;
अपने दाम———–
मैंने खुद तय किए हैं.

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