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कविता

तुम रहे हमेशा आगे ऐसे
तूफान भी न छू पाए
तुम्हारे देश के एक-
एक कण को…….
कोई अपना बनाकर
न ले जाए…..
जान हथेली पर लेकर
तुम चीर लाते हो
दुश्मन की आंख…..
तुम ढाल बने रहे ऐसे
कि शत्रु भी तुमसे
कांप जाते…..
अपनी करूणा की
चादर को छोड़
तुम वतन की रक्षा
में लौट आते ……
तुम हृदय के
सभी रिश्तों को
एक चुनौती दे आते…
रिश्तों के इन एहसासों में
एक राष्ट्रपूत प्राण हूं।
अपने स्वार्थ की
रक्षा से पहले
राष्ट्र का में
बलिदान हूं।
देश के लिए
तुम्हारा जीवन
का एक एक क्षण
तुम्हारा हिंदुस्तान है…
ए वीर देश के
वीर पुष्प….
तुम्हारा प्रेम
दुनिया के सभी
प्रेम से शक्तिमान है……

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