Site icon Saavan

कवि

ओ कवि, जरा सम्भल कर लिखना
यह कविता नही परछाई है तेरी
आत्मा का प्रतिरूप यह
तेरे अन्दर छिपी भावनाओं की प्रतीक है
अच्छे या बुरे उजागर हो जाओगे
फिर दुराव- छिपाव ना रख पाओगे
एक खुली किताब कहलाओगे
उजागर अपनी हर पीड़ा कर जाओगे
कलम तुम्हारा दृषिटकोण समझा जाएगी
तुम्हारा हर अनुभव जग-जाहिर कर जाएगी
फिर रहोगे ना खुद के ,बेपरदा हो जाओगे
दर्पण सा ही अनुभव कर पाओगे ।

Exit mobile version