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काँव काँव मत करना कौवे

काँव काँव मत करना कौवे
आँगन के पेड़ों में बैठ
तेरा झूठ समझता हूं मैं
सच में है भीतर तक पैठ।
खाली-मूली मुझे ठगाकर
इंतज़ार करवाता है,
आता कोई नहीं कभी तू
बस आंखें भरवाता है।
जैसे जैसे दुनिया बदली
झूठ लगा बढ़ने-फलने
तू भी उसको अपना कर के
झूठ लगा मुझसे कहने।
रोज सवेरे आस जगाने
काँव-काँव करता है तू
मुझ जैसों को खूब ठगाने
गाँव-गाँव फिरता है तू।
अब आगे से खाली ऐसी
आस जगाना मत मुझ में
तेरी खाली हंसी ठिठोली
चुभती है मेरे मन में।

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