कागज की कश्ती
जिसमें तैरता था बचपन कभी
बहता था पानी की तेज धारों में
बिना डरे, बिना रुके
न डूबने का खोफ़
न पीछे रह जाने का डर
जिंदगी गुजरती गयी
बिना कुछ लिखे
जिंदगी के कागज पर
लिखा था जो कुछ
घुल गयी उसकी स्याही
वक्त के पानी में बहकर
अब खाली खाली सी है जिंदगी
बहने को तरसती है
बिना रुक़े, बिना डरे