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कान्हा फ़िर से तूने माखन खाया ……

ओ कान्हा तूने फ़िर से माखन खाया ,
तोड़ दी हांडी , सारा माखन भी गिराया…..
क्यों करता है तू , इतनी कुबद रे
क्यों करता है तू , इतनी कुबद रे….
थक जाती हूं मैं , बोल कैसे तू सुधरे……

मित्र भी तेरे सारे साथ ही आते
पकड़ में तू आता और वो भाग जाते
कैसे मैं मारूँ तुझको या कैसे समझायूँ…
तू ही लाल मेरा , तुझ पर सारा प्यार मैं लुटाऊँ…..
मान जा रे लल्ला मेरे , अपनी माँ की तू अर्जी ,
चोरी छिपे न किया कर , अपनी मन मर्ज़ी…..

देती हूँ तुझको जब मैं , तू वो खा लिया कर
ऐसे न सारा माखन , तू झूठा ना किया कर ….
प्रसाद भगवन का हैं हमको बनाना..
प्रसाद भगवन का हैं हमको लगाना
जाकर फ़िर है गईयों को चारा चराना…

तेरी कुबद से मैं तो हार ही जाती हूँ
मार कर तुझको अपना दिल मैं जलाती हूँ
खा कसम मेरी , न तू वापिस ऐसे करेगा….
बनेगा मेरा अच्छा लाल , माखन ऐसे झूठा ना करेगा….

खाता हूँ मोरी मैया मैं फ़िर से ऐसा करूँगा
मित्र जो मेरे भूखे , उनका पेट मैं हमेशा भरूँगा….
भगवन को तुम बड़ी देरी से भोग लगाते…
और हम बालक बेचारे , भूख से तड़प जाते….

तुझको ना सताऊंगा , मैं बस चोरी चोरी आऊंगा ,
सारी गोपियों की हांडी , फोड़ माखन मैं चुराऊँगा…
कृष्ण नाम मेरा , मैं तो अपनी बंसी बजाऊंगा….
वासुदेव यशोदा का मैं , नटखट लल्ला कह लाऊंगा….
वासुदेव यशोदा का मैं , कान्हा कह लाऊंगा………

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