एहसास की पावन चौकी पर
भाव की मूरत बैठी है
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शब्द अलंकार से सुसज्जित हैं और
कल्पना की आराधना होती है
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इसी को कहते हैं काव्य सौन्दर्य
जो हर कवि की आत्मा कहलाती है
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इसके बिना हर रचना अपूर्ण ही है
और हर कविता विकलांग सी है
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अलंकार बिना कविता अपूर्ण
जैसे होती है नारी
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भाव की बेल पर खिलती है
प्रेम की सुगंधित कली