किताबें राही अंजाना 8 years ago अब किताबें सीने पर लेटकर सोती नहीं हैं, उंगलियां मोबाइल से एक पल को जुदा अब होती नही हैं, लगाते थे लोग महफिलें कभी खामोशियां मिटाने को, आज महफ़िलें भी सूनी सूनी होने लगी हैं॥ राही (अंजाना)