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” किया गुनाह क्या “

साँसे चल रही हैँ , बिन उसके..

आने वाला ,  जीने में मज़ा क्या…

चाह लिया उसे , उसकी इजाज़त के बगैर …..

इसमें किया गुनाह क्या ….

मोहब्त हैं उनसे , तभी मांगती हैं  निगाहें दीदार ….

वो ही आकर बताएं …

इसमें क़ुसूर – ए – निग़ाह क्या ..

 

 

पंकजोम ” प्रेम “

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