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किश्तों की मुहब्बत !

किश्तों में ही मिली, तेरी मुहब्बत हमें।
जो ना मासिक थी, न ही सालाना।

पल दो पल की मुलाकातें थीं।
ना रूठना हुआ, ना मनाना।

कभी एक-मुश्त मिले होते, तो हम करते जी भर के दीदार तेरा।
पर शायद हमारे नसीब में ही नहीं था प्यार तेरा।

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