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किसान

खेतों के सब बीज शज़र हो जाते हैं
सरहद पर वीर अमर हो जाते हैं
तुम वर्दी पहने मिट्टी साने क्या बतलाते हो
हम भी इनके जैसे हैं ये दिखलाते हो,

सीखो जरा लाल अटल और बल्लभ से
क्या होते हैं वीर-किसान देश नगर के
अब उनको तुम गोली मारो या फासी लगवा दो
कर्ज़ से इक़ है मरने वाला एक तुम्हारी यारी से,

ये भारी है सर्द रात मगर इस दिल्ली की
तान खड़े है सम्मुख किसान-जवान
कर रहै है सत्ताधारी न रहे कोई जवान किसान
फिर कर रहे भारी नुकसान इस दिल्ली की,

माना के इक़ नशा है सत्ता पर रहने का
पर ऐसा न करो शोषण जनता के लोगों का
तुम रखो ये देश संभाले रखो
पर मत बेचो ये देश जनता के लोगों का,

तुम किस चेतन के अचेतन पर अटके हो
तुम कहो नही तुम उसे अन्तर्मन में रहने दो
देश की सारी संपत्ति को लेकर आए
तुम उस सम्पति का व्योरा खैर छोड़ो रहने दो,

क्या कहते हो “बापू” के सपने को पूरा करने
तुम अपने बात पर कब तक रहते हो रहने दो
अबकी बार….सरकार का उदघोष अटल है
कुछ करो अटल बल्लभ से काम,खैर रहने दो।

तुमको क्या सियासत की रोजगारी है
हम जैसे वनवासी को नौकरी की आस जारी है
ऐसे भी अत्याचार कौन करता है बदर’
अपना भी कहता है और तीर ज़िगर के पार भी करता है।

-कुमार किशन_बदर

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