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किस खतरनाक मंज़िल की तरफ

किसीकी मज़बूरी का उपयोग

क्या खूब

ये ज़माना कर रहा है

किस खतरनाक

मंज़िल की तरफ

इंसान अब बढ़ रहा है।

 

संतुष्टि का मतलब

स्वार्थ तक ही

सीमित रह गया

लगन वाला हुनर

अब तो बस

नौकरी पाने का

लालच बनकर रह गया।

 

मज़बूरी में ही हो रही हैं

कईयों की डिग्रियां

कईं जगह तो

हो भी रही है

इन डिग्रियों की बिक्रीयाँ।

 

मानसम्मान का मतलब भी

अब केवल

दबदबा कायम करने तक ही

सीमित रह गया

औरो की क्या कहूँ

मैं खुद भी जाने

जमाने की

कितनी आँधियों में बह गया

लेकिन फिर भी मैं

कम से कम ये सच तो कह गया।

 

                                                    –   कुमार बन्टी

 

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