Site icon Saavan

कि तुम याद आ गयी

आज सोच रहा था कोई कविता लिखू
पर कैसे ये सोच ही रहा था
की तुम याद आ गयी

नयन अदृश्य कामना में लीन हो गए
वो संसय वो समपर्ण वो अभिधान(नाम)
सब कुछ तो शायद मैं भूल ही गया
कि तुम याद आ गयी

इस मनः स्थिति की दशा एक भ्रमर की भांति है
जो गुन गुन तो करता पर उड़ता नहीं है
स्वप्न का आदर्श निश्चय ही एक प्रतीक बन गया
तो क्या अब सब कुछ निश्चित हो गया
ये सोच ही रहा था कि
कि तुम याद आ गयी

मन तो अब खुद पर भी व्यंग करता है
कुछ प्रश्नों से वो मुझे भी दंग करता है
होठों पर मुस्कुराहट आयी ही थी
कि तुम याद आ गयी

Exit mobile version