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कुछ अलग ही दिख रहा हूँ

कविता कहाँ मैं आजकल
बस उलझनें ही लिख रहा हूँ,
सामने हूँ आईने के
कुछ अलग ही दिख रहा हूँ।
भूल कर पहचान खुद की
मुग्ध हूँ अपने ही मन में,
उड़ रहा आकाश में
मुश्किल जमीं में टिक रहा हूँ।

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