Site icon Saavan

कुछ इस तरह से इक

कुछ इस तरह से इक शाम गुजारी है
अपने हिस्से के गम से की वफादारी है
कुछ टुकड़ो में बाँट के रख दिया ग़मों को
अपने साथ हमने की इस तरह फौजदारी है

राजेश’अरमान’

Exit mobile version