कुछ इस तरह से इक

कुछ इस तरह से इक शाम गुजारी है
अपने हिस्से के गम से की वफादारी है
कुछ टुकड़ो में बाँट के रख दिया ग़मों को
अपने साथ हमने की इस तरह फौजदारी है

राजेश’अरमान’

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