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कुछ न कुछ दिल में चलता रहता है।

कुछ न कुछ दिल में चलता रहता है।
इक ख़्वाब अनदेखा पलता रहता है।।
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क़िस्मत कहें की मुक़द्दर कहें उसको।
जो नाम सुबह शाम खलता रहता है।।
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वक़्त गुजरा है कुछ इस तरह से जैसे।
मोम सी जिंदगी से मोम गलता रहता है।।
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अब धुंआ धुंआ ही बचा हूँ आकर देखों।
वैसे मिटटी में राख़ कहाँ जलता रहता है।।
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हमने जो कह दिया उस पर ही कायम है।
हम मौसम नहीं की जो बदलता रहता है।।
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अपनों अश्क़ो पर गुमान करते हो ठीक है।
पर दरिया ए अश्क़ यहाँ भी निकलता रहता है।
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उसके यहाँ न शाम हुई न वो मिलने आया।
यहाँ रोज सूरज निकलके ढ़लता रहता है।।
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साहिल जिसकी जुस्तजू में जिंदगी गुजार दी।
वो बस हमको छोड़के सबसे मिलता रहता है।।
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