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कुछ पाया और कुछ खोया

कुछ पाया और कुछ खोया,
क्यों मुझे इस बात पर रोना आया!
क्यों बिछड़ते रहे अपने,
क्यों अजनबियों के बीच मुझे रहना आया!
सपनें टूटते बिखरते रहे,
उसे समेटते दिल भर आया,
कुछ खोया और कुछ पाया।

क्या हुआ जो सब टूटा,
मेरे भीतर के दर्द को, 
कब मैंने समेटा,
जो खोया उसे ठुकराया,
जानकर भी इस बात पर क्यों,
इन आँखों ने सैलाब बहाया।
क्यो मुझे सिर्फ खोना ही आया!
कुछ पाये थे वो लम्हें, वो बातें।
इन सब से दूर अब मुझको जीना आया।
कुछ खोया और कुछ पाया।

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