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कुदरत की छवि

थोड़ा निहारने दो
कुदरत की छवि मुझे तुम
तुम भी निहार लो ना
इस वक्त भूलो सब गम।
सूरज निकल रहा है
सब ओर लालिमा है,
कलरव में उडगनों के
प्यारी सी मधुरिमा है।
चारों तरफ है शुचिता
सब साफ दिख रहा है,
ठंडी पवन का झौंका
नवगीत लिख रहा है।
मज्जन किये से पर्वत
उन रजकणों से ऐसे
चमके हुए हैं देखो,
मोती भरा हो जैसे।
फूलों ने रात भर में
भर कर शहद स्वयं में
भँवरे बुलाने जैसे
संदेश भेजा वन में।
भेजी सुंगध वन में
भेजी उमंग मन में
शोभा सुबह की ऐसे
उल्लास लाई मन में।

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