रात थी गहरी, काली, अंधियारी
जब जन्मे थे, गोपाल – गिरधारी।
भाद्रपद का मास था, कृष्णा पक्ष की अष्टमी,
दिन, उस दिन बुधवार था, नक्षत्र था रोहिणी।
वसुदेव, देवकी के खुल गए ताले,
सो गए सारे पहरे वाले।
आई काली घनघोर घटाएं, बेशुमार जल बरसाती जाएं
उधर कंस का डर सताए, नन्हा बालक कहां छिपाएं ।
वसुदेव को फ़िर आया ध्यान, एक परम मित्र का नाम ।
चल दिए कान्हा को लेकर, वसुदेव नंद के ग्राम ।
सिर पर लेकर एक टोकरी, उसमे कान्हा को लिटाया,
देखो जमना जी का भी, जल – स्तर था बढ़ आया
बारिश हो रही थी छम – छम, मेघ बरस रहे थे झम – झम
शेषनाग ने करा था साया, जमना जी ने चूमे प्रभ – पांव ।
वर्षा भी अब थम चुकी थी,
देवकी – नंदन आ गए नंद के गांव ।
इस तरह पहुंचे वसुदेव नंद के धाम,
जय हो कृष्णा ,हाथ जोड़कर तुम्हे प्रणाम।🙏