कैसा है ये खयाल
ऐसा है अपना हाल
जैसे,,,,
लठ्ठे जल के
बनता हो राख
राख के भीतर
छोटी सी आग
आग मरता
रहता है
हाल अपना
वैसा है,,
जैसे,,,,,
गर्मी के दिन में
सूरज कि ताप
मन में रखकर
बरखा कि याद
ताप पत्थर
सहता है
हाल अपना
वैसा है,,,
कैसा है ये खयाल
ऐसा है अपना हाल
जैसे,,,,
लठ्ठे जल के
बनता हो राख
राख के भीतर
छोटी सी आग
आग मरता
रहता है
हाल अपना
वैसा है,,
जैसे,,,,,
गर्मी के दिन में
सूरज कि ताप
मन में रखकर
बरखा कि याद
ताप पत्थर
सहता है
हाल अपना
वैसा है,,,