कैसा है ये खयाल,,
कैसा है ये खयाल
ऐसा है अपना हाल
जैसे,,,,
लठ्ठे जल के
बनता हो राख
राख के भीतर
छोटी सी आग
आग मरता
रहता है
हाल अपना
वैसा है,,
जैसे,,,,,
गर्मी के दिन में
सूरज कि ताप
मन में रखकर
बरखा कि याद
ताप पत्थर
सहता है
हाल अपना
वैसा है,,,
बहुत खूब, अति सुन्दर
धन्यवाद सर🙏🙏🙏
बहुत खूब
सुन्दर रचना, उत्तम अभिव्यक्ति
अद्भुत