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कैसी वेबसी

ये कैसी बेबसी है
नाराज़गी को ढो रहे हैं
अक्षमता को आकने के बदले
दूसरे की कमियों को गिन रहे हैं ।
ये दिन है कैसा
ना उम्मीदों का आसिया है
ख़्वाहिशों के जलने की
चुपचाप मातम मना रहे हैं ।
हर दुआ अपनी
जो कभी कबूल हो गयी थी
उन मन्नतो से ही
अपने अपनों से ज़ुदा हो रहें हैं ।
हर साँस में जिनकी
ख़ैरियत की ही दुआ आ रही थी
वही गैर से बनकर
इल्जामो की झङी लगा रहे हैं ।
किसको कहे अपना
अपना कहाँ अब है कोई
अपने ही इतर की
अभिनय, मन से निभा रहे हैं ।

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